क्षत्रियों को सबसे पहले स्वधर्म आधारित दिनचर्या अर्थात योग, प्राणायाम और व्यायाम के साथ कोई एक मार्शल आर्ट नित्य कर्म में शामिल करनी चाहिए, क्योंकि इतिहास में यवनों, शकों, हूणों, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक न हमें मार्शल कौम ही बताया है, लेकिन आज उस मार्शल कौम के सैनिक 15 मिनट धूप में नहीं खड़े हो पाते हैं। क्योंकि अब उनके शरीर में शुद्ध अनाज, घी दूध व बलवर्धक भोज्य पदार्थों की जगह दारू, मांस और फ़ास्ट फ़ूड ने ले ली है। अब बचा है तो बस गाड़ी, घर पर वंश की पहचान लिखाकर स्वैग में चलना। वैदिक अर्थो में वर्तमान में बहुत कम क्षत्रिय बचे हैं जो आज भी अपनी प्राचीन दिनचर्या का पालन करते हैं। उन्हीं की संतानें भविष्य में नेतृत्व देंगी, लेकिन उनकी भी संख्या सीमित होने से एक सीमित क्षेत्र में ही वह प्रभाव जमा पाएंगे। मनुस्मृति सहित श्रीकृष्ण गीता में मादक पदार्थों का सेवन क्षत्रिय वर्ण के लिए सर्वथा वर्जित है। यहां तक कि स्वयं एक बार सम्राट अशोक को कुछ बीमारी थी, जिसे ठीक करने के लिए उनकी पत्नी ने उनको प्याज का सेवन करने के लिए दिया, तो सम्राट अशोक ने तुरन्त मना करते हुए कहा कि "देवी मैं क्षत्रिय हूँ, भला इस प्याज का सेवन मैं कैसे कर सकता हूँ". आप समझ सकते हैं कि क्यों वह सब इतने मजबूत, शौर्यवान और शक्तिशाली हुआ करते थे, क्योंकि उनमें आत्मबल और क्षात्रबल का कारण उनकी दैनिक दिनचर्या से प्रकट हुआ त्याग, और प्राणगत साधना थी। आज ये सब बातें 90 फीसद क्षत्रिय नहीं जानते हैं और जिनको बताओ तो वह ऐसे भगते हैं जैसे उनके पीछे कोई विष का कटोरा लेकर दौड़ रहा हो। बिना विषपान के शिव नीलकंठ नहीं बने। मीरा की भक्ति भी विष से ही प्रमाणित हो गई थी। वर्तमान में क्षत्रिय की दिनचर्या अहीरों, कुर्मियों वाली हो गई है, जिससे वह इन जातियों से भी कमजोर हो गया है क्योंकि, आपने उनकी दिनचर्या अभी कुछ वर्षो से अपनायी है और, वह सहस्त्रों वर्ष से अपनाते आ रहे हैं तो जो पहले से उसमे दक्ष है उससे आप आगे निकलने में बहुत समय बर्बाद करेंगे। जबकि खुद की परंपरा का यदि प्राचीन समय का आधा भी धारण कर लिया तो उनसे बहुत कम समय में आगे निकल जाएंगे। और उनसे सांस्कृतिक रूप में भी बहुत आगे होंगे। आज वह लोग क्षत्रियों की सभी चीजें एडॉप्ट करने में लगे हैं ताकि वह हमको चुनौती देकर आगे निकल सकें और फिर हमें गुलाम बना सकें। यदि हम उनकी चुनौती के प्रतिकार की तैयारी नहीं कर पाए तो फिर हमें उनके अधीन होना ही पड़ेगा। गीता में कहा गया है कि क्षत्रियों ने अपना लौकिक ज्ञान कभी किसी दूसरे वर्ण को नहीं दिया जिस कारण ही वह युगों तक इस भारतभूमि पर शासन करते रहे। परन्तु आज हमारे क्षत्रियों के लड़के दोस्तिबाजी और छ्द्म लिबरलता व इंसानियत के ढोंग में वह सब कुछ गैर क्षत्रियों में शेयर कर दे रहे हैं जिससे वह हमारी ही पद्धति को अपनाकर हमसे आगे जा रहे हैं और हम आरएसएस व आर्यसमाज सहित हिंदूवादी संगठनों के पिछलग्गी बने रहकर हिंदुत्व में अपना समय, जवानी बर्बाद कर रहे हैं। यह एक सोची समझी रणनीति है क्षत्रियों के खिलाफ इन हिंदूवादी संगठनों की ताकि वह आराम से भविष्य में हम पर निष्कंटक शासन कर सकें। युद्ध की संभावना कभी प्रकृति में खत्म नहीं होती है, यह अनवरत जारी रहने वाली प्रक्रिया है, फिर वह चाहे अपनों के साथ हो या विदेशियों व विधर्मियों के साथ। बचेगा वही जो अपने गीता में उल्लिखित स्वधर्म अर्थात वर्णधर्म का पालन कर सकेगा। आज चीन से तैयारी है तो कल किसी अन्य देश से होगी, और देश के भीतर नीले आतंक, काले आतंक सहित ओबीसी, वामपंथी व अन्य क्षत्रिय वर्ण विरोधी जातियों से युद्ध की संभावना सदैव बनी रहेगी। अब जीतेगा वही, जिसकी रणनीति, योग, बल, अध्यात्म व सांस्कृतिक विरासत का जितना अधिक अभ्यास व उसमें निपुणता होगी।
जय क्षात्र धर्म 🙏🚩🏹⚔️
No comments:
Post a Comment