Saturday 9 May 2020

The Sacrifice of the young princess महाराणा प्रताप जी की पुत्री चम्पाकुँवर का महान बलिदान



*🚩महाराणा प्रताप जी की पुत्री चम्पाकुँवर का महान बलिदान :-* महाराणा प्रताप जी का नाम कौन नहीं जानता.? यह एक ऐसे वीर शिरोमणि थे, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता कभी स्वीकार नहीं कीं । वे राजपूत कुल के गौरव को सदा सुरक्षित रखने में तल्लीन रहे। इसी महाप्रतापी राजा की पुत्री का नाम चम्पा था।
   
अकबर द्वारा चित्तौड़ पर अधिकार कर लेने के पश्चात् महाराणा प्रताप जी अरावली पर्वत की घटियों, गुफाओं तथा वनों में परिवार सहित भटक रहे थे। रात को भूमि पर सोते, दिन भर पैदल चलते। बच्चे जंगली बेर तथा घास की रोटियाँ खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे थे। कभी-कभी तो उपवास ही करना पड़ जाता था। कितना मार्मिक एवम् हृदय विदारक दृश्य था।
   
चम्पा ग्यारह वर्ष की हो चुकी थी। महाराणा प्रताप जी का एक पुत्र भी था जो उस समय चार वर्ष का था। एक दिन दोनों बच्चे नदी तट पर खेल रहे थे। पुत्र को भूख लगी। वह रोते हुए रोटी माँगने लगा। चम्पा अपने भाई का दुःख समझ रही थी। उसने उसे उठा लिया और उसे कहानी सुनाने लगी। अच्छे-अच्छे फूल चुने और उसकी माला बनाकर बच्चे को पहनायी । किसी तरह उसे फुसला कर बहला दिया। वह गोद में ही सो गया। उसे माँ के पास लेकर आयी तो देखा महाराणा प्रताप जी चिन्तित बैठे थे।
   
पिता को चिन्तित देख चम्पा ने पूछा,“पिता जी ! आप कुछ उदासीन एवम् चिन्तित मुद्रा में है!  क्या कारण है?“
   
महाराणा प्रताप जी ने भाव विभोर हो कहा, ’बेटी! कोई बात नही है। मैं यह सोच रहा था कि आज हमारे यहाँ एक अतिथि आ गये है।

उन्हें क्या खिलाऊँ ? मेरे द्वार पर आया अतिथि भूखा चला जाए यह कदापि नहीं होना चाहिए। क्या करूँ?“
   
चम्पा ने कहा,“पिताजी ! आप इतनी सी बात के लिए चिन्तित हैं। अतिथि भूखा नहीं जायेगा। आप ने जो कल मुझे दो रोटियाँ दी थीं मैंने वे खायी नहीं है। वह रक्खी हैं  मैंने वे रोटियाँ छोटे भाई के लिए रक्खी हैं परन्तु वह अब सो गया है।“ यह कहकर चम्पा दौड़ कर पत्थर के नीचे से दो रोटियाँ उठा लाई। पिता जी को देते हुए बोली,“आप ले जाकर प्रेम पूर्वक अतिथि का सत्कार करें।“
   
महाराणा प्रताप जी ने चटनी और रोटी अतिथि को दी। वह रोटियाँ खाकर चला गया। घास की रोटियाँ उसे कितनी स्वादिष्ट लगी होंगी, भगवान ही जानता है। परन्तु महाराणा प्रताप जी से बच्चों का यह कष्ट नहीं देखा जा रहा था। उनके मन में एक विचार आया कि वे अकबर की अधीनता अब स्वीकार कर लें।
   
चम्पा भूख से त्रस्त थी। वह मूर्छित हो गयी। महाराणा प्रताप जी ने बेटी को गोद में उठाते गए रुंधे स्वर में कहा, “बेटी अब तुझे कष्ट नहीं होगा। मैंने अधीनता स्वीकारने का मन बनाया है।“
   
चम्पा चौंककर उठी। मानों उसे बिजली का तार छू गया हो। वह बोल उठी, पिता जी! आपने यह क्या कहा.? आप अकबर की दासता स्वीकार करेंगे। हम लोगों के सुख के लिए आप दास बनेंगे। आपने हम लोगों को शिक्षा दी है कि देश के गौरव की रक्षा के लिए मर जाना चाहिए। आप ही देश को नीचा दिखायेंगे । पिता जी! आप को मेरी सौगन्ध है! आप अकबर की अधीनता स्वप्न में भी कभी न स्वीकारें।……….पिता जी आप को ……………………………"

कहते-कहते चम्पा पिता की गोद में सदा सदा के लिए चुप हो गयी।  पृथ्वी राज जी ने महाराणा को पत्र लिखा जिसे पढ़कर महाराणा प्रताप जी ने अधीनता का विचार छोड़ दिया। उन्हें अपनी बेटी चम्पा के बलिदान का करूण दृश्य जैसे हिम्मत बॅधा गया हो। वे उस प्रेरणा से राजपूत कुल गौरव की रक्षा के लिए पुनः प्रयत्नशील हो उठे...!

    🚩🚩"'जय - जय क्षत्राणी"' 🚩🚩

द्वन्द कहा तक पाला जाये
युध्द कहा तक टाला जाये...

तू भी हैं राणा  का  वंशज
फेंक जहाँ तक भाला जाये ।।

रक्त बहाकर श्रृंगार करूँ, खामोश यहाँ तलवार नहीं...!
ये धरती है महाराणा की  है,  हार  हमें  स्वीकार  नहीं... !!
                      महाराणा   प्रताप

"' आप    जैसे    वीर - क्षत्रिय    एवं   राष्ट्रवादियों    को   हार्दिक   बधाई   व    शुभकामनाएँ...!"'
       
 "राजपूताना जागों"......
     "अपना मान-सम्मान"....
और इतिहास का गौरव बरकरार रखने के लिये आपलोगों को जागना होगा...!
"फिर से तलवारोँ को निकालना होगा"
इस ससाँर का क्षत्रियता से परिचय कराना होगा...!!
  🚩🕉🌞🙏🌹⚔🕉🚩
*आपका*
*पंकज सिंह राणा*
*ठी. टिनोनिया जिला देवास मप्र.*

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